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Monday, November 4, 2013

annkoot pooja

दीपावली के दूसरे (next day )दिन अन्नकूट या गोवर्धन की पूजा की जाती है। . पौराणिक कथानुसार यह पर्व द्वापर युग में आरम्भ हुआ था क्योंकि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन और गायों के पूजा के निमित्त पके हुए अन्न भोग में लगाए थे, इसलिए इस दिन का नाम अन्नकूट पड़ा. 
इस दिन  बृज में धूमधाम से छपपन भोग लगाकर इस पर्व को मनाया जाता है ,ये पर्व व्रज वासियों का विशेष रूप से है। 

कथा-----पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस पर्व को मनाये जाने  की कथा इस प्रकार है ------

कथा यह है कि देवराज इन्द्र को अभिमान हो गया था. इन्द्र का अभिमान चूर करने हेतु भगवान श्री कृष्ण जो स्वयं लीलाधारी श्री हरि विष्णु के अवतार हैं ने एक लीला रची. प्रभु की इस लीला में यूं हुआ कि एक दिन उन्होंने देखा के सभी बृजवासी उत्तम पकवान बना रहे हैं और किसी पूजा की तैयारी में जुटे. श्री कृष्ण ने बड़े भोलेपन से मईया यशोदा से प्रश्न किया ” मईया ये आप लोग किनकी पूजा की तैयारी कर रहे हैं” कृष्ण की बातें सुनकर मैया बोली लल्ला हम देवराज इन्द्र की पूजा के लिए अन्नकूट की तैयारी कर रहे हैं. मैया के ऐसा कहने पर श्री कृष्ण बोले मैया हम इन्द्र की पूजा क्यों करते हैं? मैईया ने कहा वह वर्षा करते हैं जिससे अन्न की पैदावार होती है उनसे हमारी गायों को चारा मिलता है. भगवान श्री कृष्ण बोले हमें तो गोर्वधन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्योंकि हमारी गाये वहीं चरती हैं,  इस दृष्टि से गोर्वधन पर्वत ही पूजनीय है और इन्द्र तो कभी दर्शन भी नहीं देते व पूजा न करने पर क्रोधित भी होते हैं अत: ऐसे अहंकारी की पूजा नहीं करनी चाहिए.
गोकुल वासियों ने जब ऐसा करने को मना किया तो नन्द जी ने कहा ,"जब कान्हा कह रहे हैं तो हम सबको गोवर्धन की पूजा ही करनी चाहिए। 
 लीलाधारी की लीला और माया से सभी ने इन्द्र के बदले गोवर्घन पर्वत की पूजा की. देवराज इन्द्र ने इसे अपना अपमान समझा और मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी. प्रलय के समान वर्षा देखकर सभी बृजवासी भगवान कृष्ण को कोसने लगे कि, सब इनका कहा मानने से हुआ है. तब मुरलीधर ने मुरली कमर में डाली और अपनी कनिष्ठा उंगली पर पूरा गोवर्घन पर्वत उठा लिया और सभी बृजवासियों को उसमें अपने गाय और बछडे़ समेत शरण लेने के लिए बुलाया. इन्द्र कृष्ण की यह लीला देखकर और क्रोधित हुए फलत: वर्षा और तेज हो गयी. इन्द्र का मान मर्दन के लिए तब श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से कहा कि आप पर्वत पर रहकर वर्षा की गति को नियत्रित करें और शेषनाग से कहा आप मेड़ बनाकर पानी को पर्वत की ओर आने से रोकें.
जब लगातार ७ दिनों तक की गयी मूसलाधार वर्षा से भी बृजवासियों का कुछ नहीं बिगड़ा तब इंद्र देवता ने विचार किया ये कोई साधारण मनुष्य नहीं हो सकते ,और वे ब्र्ह्मा जी के पास पहुँच गए और सारा वृतांत सुनाया ,तब ब्र्ह्मा जी ने बताया ये स्वयं साक्षात्  भगवान्  विष्णु जी हैं . तब इंद्र जी अत्यंत लज्जित होकर कृष्ण जी के पास पहुंचे और क्षमा प्रार्थना की। 
इस पराणिक घटना के बाद से ही गोवर्घन पूजा की जाने लगी. बृजवासी इस दिन गोवर्घन पर्वत की पूजा करते हैं. गाय बैल को इस दिन स्नान कराकर उन्हें रंग लगाया जाता है व उनके गले में नई रस्सी डाली जाती है. गाय और बैलों को गुड़ और चावल मिलाकर खिलाया जाता है.

इस कथा में एक रोचक कथा ये भी है कि जब सारे गोकुलवासी वापस अपने-अपने घर गए तब वहाँ पानी नाममात्र के लिए भी नहीं था ,तब गोकुलवासियों ने कान्हा से कहा ,"इतनी वर्षा का पानी जो हमारे घरों में था कहाँ गया "तब कान्हा ने कहा "आप सबने गोवर्धन पर्वत को खाना खिलाया था और किसी ने पानी पिलाया था क्या "तो सारा पानी गोवर्धन ने ही पी लिया है "

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