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Thursday, March 20, 2014

बासेड़ा या बसोड़ा




होली के सात या आठ दिन बाद बासेड़ा चैत्र के कृष्ण पक्ष में सोमवार या वीरवार को मनाया जाता है ,इस दिन शीतला माता की पूजा का विधान है।
जैसा कि नाम से ही अर्थ समझ आता है बसेड़ा यानि कि बासी भोजन ,तो इस पूजा के लिए एक दिन पहले रात्रि में ही सोंठ और गुड से गुझिया बनायीं जाती है जिसे पिढ़कुली कहा जाता है साथ ही बाजरा भी रखा जाता है ,पूजन की थाली में रोली,चावल,दही ,चीनी धूपबत्ती आदि रख कर इसे घर के सभी सदस्यों से हाथ लगाकर फिर शीतला माता की पूजा कि जाती है ।
इस दिन बसी भोजन किया जाता है यदि सब लोग बासी भोजन न कर सकें तो पूजा करने वाले व्यक्ति को तो अवश्य ही बसी भोजन ही खाना चाहिए । 

इस पूजा की कथा इस प्रकार है ----------

     एक गांव में एक बुढ़िया रहती थी,वह  बसेढे के दिन शीतला माता की पूजा करती थी और ठंडी रोटी यानि कि बासी भोजन करती थी ,उसके गांव में और कोई भी इस पूजा को नहीं करता था ।
एक दिन  गांव में आग लग गयी और बुढ़िया के अतिरिक्त सभी की झोपडी जल गयीं ,इससे सभी को बहुत आश्चर्य हुआ ,सब ने बुढ़िया से इसका कारण पुछा तब ने बताया कि बासेढे के दिन ठंडी रोटी खाती थी और शीतला माता की पूजा करती थी और तुम सभी नहीं करते थे इसीलिए ऐसा हुआ है ।
और अभी से गांव के सभी लोग इस पूजा को विधिविधान से करने लगे ।
इस दिन घर में नीम लाकर टांगना भी शुभ माना जाता है । अब इस पूजा का चलन लगभग समाप्त सा हो रहा है परन्तु अभी भी उत्तर प्रदेश में इसे बहुत से घरों में मनाया जाता है ,कुछ लोग शीतला माता के दर्शन होली वाले दिन रंग खेलने के बाद ही करते हैं और तब कोई काम शुरू करते हैं ,माँ शीतला को बताशे का प्रसाद चढ़ाया जाता है ॥ 

इसकी एक कथा इस प्रकार है -----

  एक राजा की सात बेटी थीं ,रानी रोज भोजन बनाती औ जब राजा और रानी खाने के लिए बैठते तब उसमें केवल एक ही रोटी रह जाती दोनों बाँट कर खा लेते ,अंत में दुखी होकर उन्होंने एक युक्ति सोची ,अपनी बेटियों को मामा के घर ले जाने के बहाने उन्हें जंगल में छोड़ कर अपनी टोपी पेड़ पर तंग कर घर आ गए। 
सातों बहने जंगल में भटकती -भटकती अपने गधों पर सवार एक गांव में आ गयीं वहाँ उन्होंने अपने गधों के वास्ते कुंए पर पानी भर रही महिलाओं से पानी पिलाने को कहा , परन्तु उस गांव में लगभग सभी के घरों में माता (चेचक) निकली थी और ऐसे में कोई किसी को कुछ भी खिलाता पिलाता नहीं है। 
उन महिलाओं  ने पानी पिलाने से मना कर दिया तब उन सातों बहनों ने कहा -"आप हमारे गधों को पानी पिलाएं और नहलाएं ताकि वो खुश होकर जमीन पर लोटने लगें और तब आप सभी इनके नीचे की गीली मिट्टी को अपने बच्चों के तन पर लेप लगा दें वो ठीक हो जायेंगे "
तब उन औरतों ने ऐसा ही किया और उनके बच्चे ठीक हो गए। उस राजा के पुत्र को भी माता निकली थीं और जब यह बात राजा तक पहुंची और तब उन्होंने उन लोगों से पूछा कि कैसे आप सभी के बच्चे ठीक हो गए । 
तब उन सभी ने सविस्तार बताया ,राजा ने सातों बहनों तक संदेशा भिजवाया परन्तु उन बहनों ने आने से मना कर दिया ,और कहा की जब राजा और रानी स्वयं भोजन बनाएंगे और यज्ञ करेंगे तब हम वहाँ आकर भोग लगाएं। 
राजा और रानी ने ऐसे ही किया परन्तु क्योंकि भोग देशी घी में बना था इसलिए उन्होंने भोग लगाने से इंकार कर दिया ,फिर सारा भोग तेल में बनाया गया तब उन बहनों ने भोग लगाया और पूजन किया और उस प्रसाद से राजा का बीटा भी ठीक हो गया । और इस तरह इस बासेढे की पूजा का विधान आरम्भ हुआ ॥ 

ऐसा माना जाता है कि वो सातों बहने देवी का सवरूप थीं ॥ 


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