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Friday, March 7, 2014

होली के बड़कुल्ले


 वैसे तो हिन्दू धर्म में बहुत सारे पर्व,पूजा और व्रत मनाये जाते है पर  होली,दीवाली और दशहरे के त्यौहार का महत्व अत्यधिक है ,और इन त्योहारों में कुछ विशेष पूजा का विधान भी है ,दीपावली के पहले आपस में गिफ्ट बाँट कर इसकी शुरुआत की जाती है साथ ही घरों में विशेष पकवान बना कर रखें जाते हैं ताकि मेहमानों के आने पर उनका स्वागत अच्छे से किया जा सके ,इसी तरह से होली में भी गुझिया,पापड़,चिप्स आदि तो बनाये ही जाते है साथ ही उत्तर-प्रदेश में अधिकतर घरों में बड़कुल्ला बनाने का प्रचलन है ,जो वक्त के साथ धीरे -धीरे अब कम होते जा रहा है परन्तु फिर भी काफी घरों में आज भी इसे पूरी तरह से रीति -रिवाज के साथ बनाया जाता है । 

 पहले तो मैं आप सबको बड़कुल्ला होता क्या है ये बता दूँ ! बड़कुल्ला गाय के गोबर से बनाये जाते हैं ,इससे सूरज,चाँद तलवार ,ढाल नारियल ,अधि रोटी आदि बनाये जाते हैं ,और फिर इनको नारियल की पतली रस्सी में पिरोकर होली की अग्नि में डालकर पूजा सम्पन्न की जाती है।  बड़कुल्ला फुलहारा दुवीज को बनाये जाते है । 

कहा ये जाता है कि होली के दिन जिस दिन भद्रा न होवे उस दिन बड़कुल्ले को घर में जितने बच्चे होते हैं उतनी ही माला बड़कुल्ले,नारियल,मखाना और सुपारी के साथ बनाकर रंग और पूजा की थाली सजा कर होलिकादहन स्थल पर ले जाकर विधिवत  पूजा कर के इसे होली में दहन किया जाता है ,। 
मान्यता यह है कि इससे घर की परेशानियां  दूर होती हैं ,साथ ही सभी बड़े छोटे उबटन भी लगते हैं और इस उबटन को भी होली में जला दिया जाता है ताकि शरीर के मैल  के साथ ही मन का मैल भी भस्म हो जाये । साथ ही सुख-समृद्धि आती है । 
होली के दिन सायंकाल में शीतला माता के दर्शन और पूजा का भी विशेष महत्व है ,यदि  सम्भव हो तो किसी मंदिर में अथवा घर पर ही शीतला माता की पूजा करनी चाहिए । 

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