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Thursday, March 3, 2016

विजया एकादशी दिनांक ५ मार्च २०१५

फाल्गुण मास के कृष्ण पक्ष की एकाद्शी को विजया एकादशी के नाम से जाना जाता है. एकादशी व्रत करने से व्यक्ति के शुभ फलों में वृ्द्धि होती है।

इस वर्ष यह एकादशी दिनांक ५ मार्च २०१५ को पड़  रही है, यह सब व्रतों से उत्तम व्रत है।एक समय देवर्षि नारदजी ने जगत् पिता ब्रह्माजी से कहा महाराज! आप मुझसे फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी विधान को जानने की इच्छा रखते हुए इस एकादशी के बारे में विस्तार से बताने का आग्रह किया। 
 ब्रह्माजी कहने लगे कि हे नारद! विजया एकादशी का व्रत पुराने तथा नए पापों को नाश करने वाला है। यह समस्त मनुष्यों को विजय प्रदान करती है।

 इस व्रत की कथा इस प्रकार है--

 त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्रजी को जब चौदह वर्ष का वनवास हो गया, तब वे श्री लक्ष्मण तथा सीताजी ‍सहित पंचवटी में निवास करने लगे। वहाँ पर दुष्ट रावण ने जब सीताजी का हरण ‍कर लिया है, इस समाचार से अत्यंत व्याकुल हो वे लक्ष्मण सहित सीताजी की खोज में चल पड़े।  
 घूमते-घूमते जब वे उस जगह पहुंचे जहाँ रावण से सीताजी को बचाते हुए जटायु घायल अवस्था में पड़े हुए थे, जटायु उन्हें सीताजी का वृत्तांत सुनाकर स्वर्गलोक चला गया। कुछ आगे जाकर उनकी सुग्रीव से मित्रता हुई और बाली का वध किया। हनुमानजी ने लंका में जाकर सीताजी का पता लगाया और उनसे श्री रामचंद्रजी और सुग्रीव की‍ मित्रता का वर्णन किया। वहाँ से लौटकर ह जब श्री रामचंद्रजी समुद्र से किनारे पहुँचे तब  उस अगाध समुद्र को देखकर लक्ष्मणजी से कहा कि इस समुद्र को हम किस प्रकार से पार करेंगे। इस पर भगवान श्री राम ने समुद्र देवता से मार्ग देने की प्रार्थना की. परन्तु समुद्र ने जब श्री राम को लंका जाने का मार्ग नहीं दिया तो भगवान श्री राम ने ऋषि गणों से इसका उपाय पूछा. ऋषियों में भगवान राम को बताया की प्रत्येक शुभ कार्य को शुरु करने से पहले व्रत और अनुष्ठान कार्य करने से कार्यसिद्धि की प्राप्ति होती है. और सभी कार्य सफल होते है. हे भगवान आप भी फाल्गुण मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत विधिपूर्वक किजिए.
भगवान श्री राम ने ऋषियों के कहे अनुसार व्रत किया और इसके प्रभाव से दैत्यों पर विजय पाई। 
किसी भी व्रत पूजन को पूर्ण विधि- विधान से करने से समस्त कार्यों की सिद्धि होती है।