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Tuesday, December 12, 2017

सफला एकादशी व्रत, विधान और महत्त्व दिसम्बर १३ २०१७



          सन्दर्भ :-

                            पौष मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी को सफला नामक एकादशी कहा गया है, वर्ष २०१७ में यह व्रत दिनांक १३ दिसम्बर को पड़ रहा है. सूत जी ने कहा है कि युधिष्ठिर ने कृष्ण से पूछा कि माघ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या महात्मय एवं विधान है।

         महत्त्व :- 

                          जो व्यक्ति सफला एकादशी के दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करता है। रात्रि में जागरण करते हैं ईश्वर का ध्यान और श्री हरि के अवतार एवं उनकी लीला कथाओं का पाठ करता है उनका व्रत सफल होता है।
                         इस एकादशी के व्रत से व्यक्तित को जीवन में उत्तम फल की प्राप्ति होती है और वह जीवन का सुख भोगकर मृत्यु पश्चात विष्णु लोक को प्राप्त होता है. यह व्रत अति मंगलकारी और पुण्यदायी है। 

         कथा :-

                         युधिष्ठर के प्रश्न् को सुनकर श्री कष्ण ने कहा एक थे राजा महिष्मति उनके पांच पुत्रों में सबसे बड़ा पुत्र बहुत ही अधर्मी था. वह सदा नीच कर्म करता था. शास्त्रों में जो भी पाप कर्म बताये गये हैं वह उन सभी मे लिप्त रहता था. धर्मात्मा राजा अपने पुत्र के स्वभाव एवं व्यवहार से अत्यंत दुखी था. पुत्र के इस नीच कर्म को देखकर राजा ने उसका नाम लुम्भक रख दिया और उसे उत्तराधिकार से वंचित कर देश त्यागने का आदेश दिया.
                        पिता द्वारा अधिकार से वंचित किये जाने एवं देश से बाहर निकाल दिए जाने पर लुम्भक धनहीन हो गया. जीवन की रक्षा के लिए तब लुम्भक ने राज्य में चोरी करना शुरू कर दिया. एक दिन कोतवालों ने उसे चोरी करते पकड़ लिया और राजा के समक्ष ले जाने लगे तब उसने अपने आपको राजकुमार बताया जिससे सैनिकों ने लुम्भक को मुक्त कर दिया. अब लुम्भक जंगल में कंद मूल, फल एवं पशु पक्षियों के मांस पर आश्रित रहने लगा.
                       सौभाग्य से माघ महीने की कृष्ण पक्ष में दशमी तिथि को उसे कुछ भी खाने को नहीं मिला और वह भूखा-प्यासा ही सो गया लेकिन भूख के कारण उसे नींद भी नहीं आ रही थी ,, उसका शरीर ठंढ से अकड़ गया और वह अचेत हो गया. अगले दिन जब उसकी नींद खुली तब दिन के दो-पहर गुजर चुके थे. वह जल्दी जल्दी कंद मूल इकट्ठा करने निकल चला क्योंकि उसे लग रहा था कि अगर आज रात भी भूखा रहना पड़ा तो मृत्यु निश्चित है.
                      कंद मूल एवं फल इकट्ठा करते हुए कैसे सांझ ढल गयी लुम्भक को पता भी नहीं चला. जब वह अपने आश्रयदाता पीपल वृक्ष के पास पहुंचा तब काफी रात हो गयी थी और वह काफी थक भी गया था. इस स्थिति में उसने एकत्रित  किये गये फलादि को पीपल की जड़ में रख कर विष्णु का नाम लेकर सो गया लेकिन ठंढ़ ने उसे इस रात भी सोने नहीं दिया. सुबह आकाशवाणी हुई कि तुमने अनजाने ही सफला एकादशी का व्रत कर लिया जिसके पुण्य से तुम राजा बनोगे और पुत्र सुख प्राप्त करोगे.
                     इस घटना के पश्चात, जंगल के जीवन से जब लुम्भक दुर्बल होता जा रहा था तो उसके मन में आया कि क्यों न फिर से चोरी की जाये,   सो वह शहर की ओर चल पड़ा. संयोग कि बात है कि वह जिस घर में प्रवेश किया उसमें एक साधु रहता था. साधु के घर में उसे कुछ भी नहीं मिला लेकिन उसकी आहट से साधु की नींद खुल गयी और उसने उसे भोजन कराया और प्यार से बातें की.
                    साधु की बातों एवं व्यवहार से प्रभावित होकर लुम्भक साधु के साथ ही रहने लगा. साधु की संगत और संस्कार ने उसके विचार एवं व्यवहार को बदल दिया और वह सदाचारी बन गया. राजकुमार का स्वभाव जब परिवर्तित हो गया तब उस साधु ने बताया कि वह साधु और कोई नहीं उसका पिता राजा महिष्मति है.
महिष्मति ने अब लुम्भक को अपना उत्तराधिकारी बनाया और वह कई वर्षो तक धर्मानुसार शासन करता हुआ एक दिन अपने पुत्र को राज्य संप कर सन्यास ग्रहण कर श्री हरि की भक्ति में लीन हो गया और मृत्यु पश्चात मोक्ष को प्राप्त हुआ।


            आहार :-

                          इस दिन नारियल,नीबू,सुपारी आदि अर्पण करके नारायण की पूजा करनी चाहिए और तिल व् गुड़ का सागर लेना चाहिए ।

Saturday, October 28, 2017

kartik poornima/ कार्तिक पूर्णिमा/ 4 नवंबर 2917

कार्तिक पूर्णिमा का हिन्दू धर्म में बहुत महत्त्व है.पुराणों में मान्यता है कि आज के दिन शिव जी ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था अतः अगर इस दिन कृतिका नक्षत्र हो तो इस पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा कहते हैं और इस दिन इसका महत्त्व और भी बढ़ जाता है।
वर्ष २०१७ में ४  नवम्बर को यह पूर्णिमा पड़ेगी -
शरद पूर्णिमा से शुरू होकर कार्तिक पूर्णिमा को समाप्त होने वाले इस माह में गंगा स्नान का भी बहुत महत्त्व है, श्रद्धालु पूरे माह प्रातः उठकर स्नान से निवृत होकर तारों के दर्शन करते हैं, कुछ लोग पूरे माह गंगा स्नानं को जाते हैं।
मत्स्यपुराण के अनुसार इस दिन भगवान् विष्णु ने  प्रलय काल में वेदों की रक्षा करने के लिए मत्स्य अवतार लिया था .इस  दिन दान -स्नान तथा दीप दान का विशेष महत्त्व है।
इस दिन चंद्रोदय पर शिवा ,सम्भूति।,संतति ,प्रीती ,अनुसूया ,और क्षमा इन छः कृतिकाओं का पूजन और वृष दान से शिवपद की प्राप्ति होती है।
शास्त्रों में वर्णित है कि कार्तिक पुर्णिमा  के दिन पवित्र नदी व सरोवर एवं धर्म स्थान में जैसे, गंगा, यमुना, पुष्कर, गोदावरी, नर्मदा, गंडक, कुरूक्षेत्र, अयोध्या, काशी में स्नान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है. महर्षि अंगिरा ने स्नान के प्रसंग में लिखा है कि यदि स्नान में कुशा और दान करते समय हाथ में जल व जप करते समय संख्या का संकल्प नहीं किया जाए तो कर्म फल की प्राप्ति नहीं होती है.

कथा ---

एक बार त्रिपुर राक्षस ने एक लाख वर्ष तक प्रयागराज में घोर तप किया ,इस तप से  समस्त जड़ ,चेतन ,जीव तथा देवता भयभीत हो गए। देवताओं ने तप भंग करने के लिए अप्सराएं भेजीं पर उन्हें भी सफलता नहीं मिली। ब्रह्मा जी ने उसे वरदान दिया था कि वह देवता से मरे और न ही मनुष्य से।
और इस वरदान के कारण त्रिपरसुर ने निडर हो अत्याचार करना शुरू कर दिया तब महादेव तथा त्रिपुरासुर का घमासान युद्ध हुआ, अंत में शिव जी ने विष्णु जी  की सहायता से उसका अंत कर दिया !तभी से इस दिन का महत्त्व बढ़ गया और इस दिन को दीपावली से ही सामान मनाया जाता है।
 कार्तिक पूर्णिमा का दिन सिख सम्प्रदाय के लोगों के लिए भी काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दिन सिख सम्प्रदाय के संस्थापक गुरू नानक देव का जन्म हुआ था. सिख सम्प्रदाय को मानने वाले  पूरे कार्तिक माह में सुबह स्नान कर गुरूद्वारों में जाकर गुरूवाणी सुनते हैं और नानक जी के बताये रास्ते पर चलने की सगंध लेते हैं.तथा प्रभात फेरियां करते हैं। इस दिन कढ़ाव प्रसाद बना कर वितरित करते हैं। कढ़ाव प्रसाद में सूजी का हलवा बनाया जाता है।
कार्तिक माह में रामायण का अध्धययन करने से बहुत पुण्य प्राप्त होता है। कुछ लोग पूरे कार्तिक में कार्तिक महात्म्य कि पुस्तक का पाठ करते हैं।
पूरे कार्तिक मास में तुलसी पूजन का विशेष महत्त्व  है, तुलसी पर दीप जलना, तुलसी विवाह आदि की परम्परा बहुत पुरानी है, एकादशी से पूर्णिमा तक किसी भी दिन तुलसी विवाह किया जाता है, परन्तु अधिकतर घरों व् मंदिरों में प्रबोधिनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह का आयोजन बड़ी धूमधाम से किया जाता है।


कुछ लोग कार्तिक पूर्णिमा के अगले दिन प्रातः ४ बजे उठकर दरिद्र भगाते हैं।

Tuesday, October 24, 2017

prabhodhini ekadashi/ प्रबोधनी एकादशी/ देवोत्थानी एकादशी/ दिनांक ३१ अक्टूबर २०१७






कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवोत्थान एकाद्शी,ग्यारस तुलसी या देव उठावनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. कुछ स्थानों में इसे प्रबोधनी एकाद्शी भी कहा जाता है. इसे पापमुक्त एकादशी भी माना जाता है। 
 कहा ये जाता है कि भाद्रपक्ष की एकादशी को भगवान् विष्णु ने शंखासुर नामक राक्षस का वध किया और क्षीर सागर में थकावट के कारण शयन करने चले गए और प्रबोधनी एकादशी को चार माह के पश्चात  विश्राम समाप्त किया, तभी से चौमास प्राम्भ होता है. देवउठावनी एकादशी के दिन भगवन विष्णु शयन से उठते हैं अतः इस लिए इसे देवोत्थान एकादशी भी कहते हैं।
इस तिथि के बाद ही शादी-विवाह आदि के शुभ कार्य शुरु होते है. वर्ष २०१७   में यह एकादशी दिनांक ३१ अक्टूबर को पड़ेगी।

प्रबोधनी एकादशी के विषय में कहा गया है,कि समस्त तीर्थों में जाने था, गौ, स्वर्ण, भूमि आदि के दान का फल और कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रबोधनी एकादशी के रात्रि के जागरण के फल एक बराबर होते है. राजसूय यज्ञ के बराबर इस एकादशी का फल माना गया है।  इस संसार में उसी का जीवन सफल है, जिसने प्रबोधनी एकादशी का व्रत किया है. संसार में जितने तीर्थ स्थान है, वे सभी एकत्र होकर इस एकादशी को करने वाले व्यक्ति के घर में होते है. देवोत्थानी एकादशी करने से व्यक्ति धनवान, योगी, तपस्वी तथा इन्द्रियों को जीतने वाला बनता है. इस व्रत को करने से व्यक्ति भगवान श्री विष्णु का प्रिय बन जाता है.

इस दिन तुलसी विवाह भी किया जाता है,कहा जाता है कि कार्तिक मास मे जो मनुष्य तुलसी का विवाह भगवान से करते हैं, उनके पिछलों जन्मो के सब पाप नष्ट हो जाते हैं।
 कार्तिक मास में स्नान करने वाले स्त्रियाँ कार्तिक शुक्ल एकादशी का शालिग्राम और तुलसी का विवाह रचाती है।

 वैसे तो तुलसी विवाह कि कई कथाएं हैं मगर हम जो कथा विशेष रूप से तुलसी विवाह पर कहते हैं वो इस प्रकार है ------

एक माँ की २ पुत्रियां थीं उनमें  से एक उसकी सौतेली बेटी थी, जिस कारण से वह उससे द्वेश रखती थी। मगर पुत्री उसे अपनी सगी माँ की ही तरह मानती थी और वह पूरे कार्तिक मास में तुलसी जी की पूजा करती व् विवाह विधि पूर्वक करती थी जिससे उसकी माँ उससे नाराज रहती थी। 

जब वह विवाह के लायक हुई तो माँ ने उसका विवाह तय कर दिया मगर उसके विवाह पर उसे दहेज़ की जगह तुलसी पत्र और मंजरी ही दे दिया। 

पुत्री के विदा के समय नाउ भी साथ में भेजा ताकि वह आकर उसके ससुराल का समाचार सुनाये। रस्ते में जब सभी बारातियों को भूख लगी तब उन्होंने पात्र खोलकर देखा तो उसमें तरह-तरह के फल ,मेवा और मिष्ठान थे जिन्हें उन सभी ने बड़े चाव से खाया। 

घर से जब उसका नाउ वापस चलने लगा तो उस पुत्री ने उसे २ तुलसी पत्र  दिए ,जब वह घर आया तो वे तुलसी पत्र  सोने की गिन्नी के रूप में बदल गए। 

यह देखकर उस स्त्री ने अपनी सगी बेटी को भी तुलसी की पूजा के लिया कहा और उसे भी कहा कि वो तुलसी पत्र और मंजरी को घड़े में संभालकर रखे, तथा शीघ्र ही उसका भी विवाह कर दिया ,विदा के समय उसके साथ भी उसी तरह मंजरी और तुलसी पत्र रख दिए जैसे अपनी सौतेली बेटी के साथ रखे थे। 

जब रस्ते में बारातियों ने पात्र खोले तो उनमें मिट्टी और तुलसी पत्र के अतिरिक्त कुछ नहीं था जिसके कारण  वे सभी नाराज हुए और बुरा भला कहने लगे। 

इधर जब माँ को पता चला तो वो अपनी सौतेली बेटी पर बहुत नाराज हुई और कहा तूने जादू  -टोना किया है। 

तब पुत्री ने कहाँ माँ मैं तो मन से तुलसी पूजा करती थी और इसके कारण मुझे तुलसा महारानी का आशीर्वाद मिला है। 

तब माँ को अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने भी तभी  से तुलसी पूजन आरम्भ कर दिया। 

 तुलसी विवाह के सुअवसर पर व्रत रखने का बड़ा ही महत्व है. आस्थावान भक्तों के अनुसार इस दिन श्रद्धा-भक्ति और विधिपूर्वक व्रत करने से व्रती के इस जन्म के साथ-साथ पूर्वजन्म के भी सारे पाप मिट जाते हैं और उसे पुण्य की प्राप्ति होती है.
इस दिन इस तरह की रंगोली या चौक पूरते (बनाते) हैं और सिंघाड़े, शकरकंद  आदि  से पूजन करते हैं 
इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि से निवृत होकर व्रत का संकल्प लेकर सूर्यदेव को जल अर्पित करना चाहिए। 
इस दिन निराहार व्रत रहकर बारस को ब्राह्मणों को दान करने के पश्चात् भोजन का विधान बताया गया है लेकिन यदि ऐसा संभव न हो तो फलाहार के साथ इस व्रत को किया जा सकता है मगर अन्न का निषेध बताया गया है। 
शमी के पुष्प, बेल पत्र चढाने का महत्त्व भी बताया गया है।

Thursday, September 14, 2017

इंदिरा एकादशी

                   अश्विन माह के कृष्ण पक्ष को पड़ने वाली एकादशी का नाम इंदिरा एकादशी है,  यूँ तो सभी एकादशी का अपना अलग महत्व है परन्तु श्राद्ध पक्ष में पड़ने वाली इस एकादशी का महत्व बहुत है, ऐसा माना जाता है कि इस एकादशी का फल पितरों के लिए होता है इसके करने से पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है।
 वर्ष २०१७ में यह एकादशी दिनांक १६ सितम्बर दिन शनिवार को पड़ रही है।

                  वैसे तो एकादशी की पूजा काफी विधि पूर्वक की जाती है परन्तु गृहस्थ अपनी सुविधानुसार एकादशी को कर सकते हैं विशेष रूप से यदि मान कर एकादशी का व्रत किया जा रहा है तो पूर्ण रूप से विधि अनुसार ही एकादशी का व्रत किया जाना चाहिए।


कथा :- 



श्री द्वारकानाथ जी युधिष्ठिर से बोले :- हे धर्मपुत्र अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम इंदिरा एकादशी है और इसके महात्म्य की एक कथा मैं कहता हूँ  :-

                 
                एक समय नारद मुनि ब्रह्म लोक से यम लोक में आये, वहां एक धर्मात्मा राजा को दुखी देखा, मुनि के दिल में दया भाव जागे। उसका भविष्य कर्म विचार कर महिष्मति नगरी में आये वहां इस राजा का पुत्र राज्य करता था, नारद ऋषि इससे कहने लगे तेरे पिता को मैं यमराज की सभा में बैठा देख आया हूँ और उसके शुभ कर्म को भी जो की उसे स्वर्ग को देने वाले हैं।

            मात्र एक एकादशी व्रत के बिगड़ जाने के कारन ही उनको यम लोक मिला है यदि तुम विधि पूर्वक इंद्रा एकादशी का व्रत पिता के निमित्त कर लो तो अवश्य ही उनको स्वर्ग लोक मिल जायेगा।
        
          इतना कहकर महर्षि ने उस पुत्र को इस एकादशी की शुभ विशि कुछ इस तरह से बतलायी  :-



विधि :-


             १. दशमी के दिन पितृ की श्राद्ध करके ब्राह्मणों को प्रसन्न करें।
             २. गौ का ग्रास, कौवे का ग्रास बनाएं और उनका पेट भरें।
             ३. मिथ्या भाषण न करें, रात्रि को भूमि पर शयन करें।
             ४. प्रातः श्रद्धा सहित भक्ति से एकादशी का व्रत करें।
             ५. ब्राह्मणों को यथाशक्ति दक्षिणा दे कर फलाहार का भोग लगाएं।
             ६. गौ माता को भी मधुर फलों का भोग लगाएं।
             ७. रात्रि जागरण कर विष्णु भगवन का पूजन करें।


       ऐसी शिक्षा दे कर नारद मुनि अंतर्ध्यान हो गए, राजा ने विधिपूर्वक एकादशी का व्रत व् पूजन किया।
       उसी समय इसके ऊपर पुष्पों को वर्ष हुई और ऊपर दृष्टि करने पर  पाया कि पुष्पक विमान में सवार उसके पिता स्वर्ग की ओर जा रहे थे।



फलाहार :- इस दिन शालिग्राम की पूजा कर टिल और गुड़ का सागर लेना चाहिए।


Tuesday, September 12, 2017

श्रीभगवतीस्तोत्रम्







दिनांक २१ सितबंर २०१७ से नवरात्री का शुभागमन हो रहा है माता रानी हमारे घर पधारे और हम सब पर अपनी कृपा दृष्टि बनाये रखें यही हम सब की कामना होती है।
 हम सब तरह -तरह से माँ की प्रार्थना अर्चना करते हैं  इसी श्रेणी में मैं यहाँ श्री भगवती स्त्रोत का वर्णन कर रही हूँ, इस स्त्रोत का उच्च स्वर से पाठ करना बहुत ही फलदायी होता है, इस स्त्रोत को सबसे पहले मैंने टीवी पर प्रसारित होने वाली माँ वैष्णव की आरती के दौरान सुना था और वहीँ इसे कंठस्थ भी किया।


  • जय भगवती देवी नमो वरदे, जय पापविनाशिनी बहु फलदे ॥ 
  • जय शुम्भ निशुम्भ कपाल धरे, जय  प्रणमामी तु विनिशर्तिहरे ॥ 
  • जय चन्द्र्दिवाकर नेत्र धरे, जय पावक भूशिन्वक्त्र धरे ॥ 
  • जय भेरवदेह निलीनपरे, जय अन्धक्दैत्य  विशोषकरे   ॥ 
  • जय महिष विमर्दिनी शूलकरे, जय लोक समस्त्क पाप हरे ॥ 
  • जय देवी पितामह विष्णुनते, जय भाष्कर शक्र शिरोअवनते ॥ 
  • जय षन्मुख सायुध ईश्नते, जय सागर गामिनी शम्भुनते ॥ 
  • जय दुःख दरिद्र विनाश्कारे, जय पुत्र कलत्र विबुद्धिकरे ॥ 
  • जय देवी समस्त शरीर धरे, जय नाक विदर्शिनी दुःख हरे ॥ 
  • जय वांछित दायिनी सिद्धि वरे, जय व्याद्विनाशिनी मोक्ष करे ॥ 
श्री भगवती की स्तुति का नित्य प्रति पाठ करने से मानसिक शांति प्राप्त होती है और माँ की कृपा बनी रहती है .

Wednesday, August 30, 2017

वामन एकादशी / २ सितंबर २०१७

हिन्दू धर्म के अनुसार वर्ष में चौबीस एकादशी पड़ती हैं और जिस वर्ष अधिक मास पड़ता है उस वर्ष दो एकादशी अधिक पड़ती हैं। एकादशी माह में दो पड़ती है प्रति पन्द्रहवें दिन एकादशी पड़ती है।


 विधि पूर्वक एकादशी का व्रत  और पूजन विशेष फलदायी माना गया है, एकादशी के व्रत में यूँ तो अनाज और नमक खाना वर्जित है परन्तु यदि कोई नमक खाना चाहे तो व्रत वाला (सेंधा नमक) ले सकता है मगर अन्न लेना विशिष्ट रूप से वर्जित है।

माना ये गया है कि एकादशी में चावल न ही खाने चाहिए न ही  दान करने चाहिए और न चढाने चाहिए।


भाद्र पक्ष की शुक्ल एकादशी को वामन एकादशी कहा जाता है और इसे परिवर्तिनी एकादशी भी कहा जाता है।  इस एकादशी में वामन  की पूजा का विधान है । भगवान् विष्णु अपनी शयन वेदिका पर करवट बदलते रहते हैं और इसीलिए इसे परिवर्तिनी एकादशी भी कहा जाता है ।

इस वर्ष यह एकादशी २ सितंबर २०१७ को पड़ रही है।  






कथा :-

 
 
त्रेता युग में प्रहलाद के पौत्र राजा बलि राज्य करता था ,ब्राह्मणों का सेवक था और भगवान् विष्णु का परम भक्त था । मगर इन्द्रादि देवताओं का शत्रु था । अपने भुज बल से देवताओं को विजय करके स्वर्ग से निकाल दिया था । देवताओं को दुखी देखकर भगवन विष्णु में वामन का स्वरुप धारण किया और राजा  बलि के द्वार पर आकर खड़े हो गए और कहा मुझे तीन पग प्रथ्वी का दान चाहिए , बलि बोले --"तीन पग क्या मैं तीन लोक दान कर सकता हूँ " 
 
भगवान् ने विराट रूप धारण किया ,२ लोकों को २ पग में ले लिए ,तीसरा पग राजा बलि के सर पर रखा जिसके कारण पातळ लोक चले गए । 
 
जब भगवान् वामन पैर उठाने लगे तब बलि ने उनके चरणों को पकड़कर कहा इन्हें मैं मंदिर में रखूंगा । 
तब भगवान् बोले -"यदि तुम वामन एकादशी का व्रत करोगे तो में तुम्हारे द्वार पर कुटिया बनाकर रहूँगा। "
राजा बलि एकादशी का व्रत विधिपूर्वक किया और कहा जता है की तभी से भगवान् की एक प्रतिमा पातळ लोक में द्वारपाल बनकर निवास करने लगी और एक प्रतिमा छीर सागर में निवास करने लगी । 
 
 
इस दिन सम्भव हो सके तो वामन भगवान् की मूर्ती की पूजा करनी चाहिए और ककड़ी या खीरे का सागार लेना चाहिए।  

Saturday, August 19, 2017

ganesh chaturthi/गणेश चतुर्थी 25 August 2017

भाद्र पक्ष की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी का आयोजन धूमधाम से किया जाता है, और  इसे विनायक चतुर्थी भी कहा जाता है  गणेशजी का वाहन मूषक है , इनको बुद्धि का देवत माना जाता है । इनकी पत्नी रिद्धि और सिद्धि हैं । और गणेश जी का प्रिय भग मोदक है जो चावल के आटे से बनाया जाता है और जिसमें नारियल और गुड़ डाला जाता है । चतुर्थी के दिन गणेश जी की स्थापना करने के बाद सभी लोग अपनी सुविधा के अनुसार रखते हैं ,और फिर १० दिनों के बाद विसर्जन किया जाता है । 
शिवपुराण में ऐसा विदित है कि एक समय माता पार्वती के स्नान से  मैल से एक पुत्र को उतपन्न किया और उनमें प्राण फूंक दिए, और उसे अपना द्वारपाल नियुक्त किया,  जिसने शिव जी के आने पर उन्हें भीतर न जाने दिया और शिव जी ने क्रोध में आकर उसका सर धड़ से अलग कर दिया, माता पार्वती अत्यं क्रुद्ध हो उठीं, महर्षि नारद के आग्रह पर माँ जगदम्बा की स्तुति द्वारा उनको शांत किया गया, श्री भगवन ने हठी का मस्तक उस पुत्र को लगाकर ओनह उनमें प्राण फूंक कर जीवित किया, भगवान शंकर ने बालक से कहा-गिरिजानन्दन! विघ्न नाश करने में तेरा नाम सर्वोपरि होगा। गणेश्वर!तू भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को चंद्रमा के उदित होने पर उत्पन्न हुआ है। इस तिथि में व्रत करने वाले के सभी विघ्नों का नाश हो जाएगा और उसे सब सिद्धियां प्राप्त होंगी। कृष्णपक्ष की चतुर्थी की रात्रि में चंद्रोदय के समय गणेश तुम्हारी पूजा करने के पश्चात् व्रती चंद्रमा को अ‌र्घ्यदेकर ब्राह्मण को मिष्ठान खिलाए। किसी भी शुभ कार्य को आरम्भ करने से पहले विघ्नविनाशक श्री गणेश जी की पूजा की जाती है । 
महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी बड़े ही धूमधाम से मनाई जाती है । 
कैसे करें पूजन ,स्थापना और विसर्जन ..
  • गणेशोत्सव के दिन प्रात:काल स्नानादि से निवृत्त होकर सोने, तांबे, मिट्टी अथवा गोबर  गणेशजी की प्रतिमा बनाई जाती है। गणेशजी की इस प्रतिमा को कोरे कलश में जल भरकर, मुंह पर कोरा कपड़ा बांधकर उस पर स्थापित किया जाता है। फिर मूर्ति पर (गणेशजी की) सिंदूर चढ़ाकरपूजन करना चाहिए ।
  • पूजन के समय अपना मुंह उत्तर या पूर्व की और रखना चाहिए । 
  • पूजन में पुष्प ,धूप के पश्चात :ॐ गण गणपतये नमः"मन्त्र से माला का जप करना चाहिए । 
  • पूजन में तिल ,गुड़ से बनी चीज़ों का भोग लगाना चाहिए ,गणेशजी को मोदक सर्वप्रिय है । 
  • अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान करना चाहिए ।
  • गणेशजी को केवड़ा जल के सुगन्धित जल से स्नान कराना बहुत ही शुभ माना गया है। 
  • प्रतिदिन यदि गणेश जी की प्रतिमा को केवड़ा जल से स्नान कराएं तो संतान के लिए लाभदायी होती है। 
  • गणेश जी को तुलसी  पत्र नहीं चढ़ाना चाहिए।


कथा :-                 

  • पौराणिक गणेश कथा के अनुसार एक बार देवता कई विपदाओं में घिरे थे। तब वह मदद मांगने भगवान शिव के पास आए। उस समय शिव के साथ कार्तिकेय तथा गणेशजी भी बैठे थे। 
    देवताओं की बात सुनकर शिवजी ने कार्तिकेय व गणेशजी से पूछा कि तुममें से कौन देवताओं के कष्टों का निवारण कर सकता है। तब कार्तिकेय व गणेशजी दोनों ने ही स्वयं को इस कार्य के लिए सक्षम बताया। इस पर भगवान शिव ने दोनों की परीक्षा लेते हुए कहा कि तुम दोनों में से जो सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके आएगा वही देवताओं की मदद करने जाएगा।
        

     
  • भगवान शिव से यह सुनते ही कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकल गए। परंतु गणेशजी सोच में पड़ गए कि वह चूहे के ऊपर चढ़कर सारी पृथ्वी की परिक्रमा कैसे करेंगे ,इस तरह से तो बहुत समय लग जाएगा। 
    उन्हें एक उपाय सूझा। गणेश अपने स्थान से उठें और अपने माता-पिता की सात बार परिक्रमा करके वापस बैठ गए। परिक्रमा करके लौटने पर कार्तिकेय स्वयं को विजेता बताने लगे। तब शिवजी ने श्रीगणेश से पृथ्वी की परिक्रमा ना करने का कारण पूछा।

    तब गणेश ने कहा - 'माता-पिता के चरणों में ही समस्त लोक हैं।' 
    यह सुनते ही भगवान शिव ने गणेशजी को देवताओं के संकट दूर करने की आज्ञा दी। इस प्रकार भगवान शिव ने गणेशजी को आशीर्वाद दिया कि चतुर्थी के दिन जो तुम्हारा पूजन करेगा और रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देगा उसके तीनों ताप यानी दैहिक ताप, दैविक ताप तथा भौतिक ताप दूर होंगे। 
  •  जिस भी दिन विसर्जन किया जाना हो पूजन ,वंदन करके कलश और थाल के साथ गणेश जी की प्रतिमा को बंधू जनों के साथ जाकर किसी नदी या तालाब में जाकर विसर्जित करना चाहिए । 
 
 

भाद्र पक्ष की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन चन्द्र दर्शन भी निषिद्ध है ,ऐसी मान्यता है की इस दिन चन्द्र दर्शन से झूठा कलंक लगता है। और कहा ये जाता है की यदि गलती से चन्द्र दर्शन हो जाएं तो भागवत में स्यांतक मणि की कथा को विस्तार पूर्वक पढ़ने से इसका दोष नहीं रहता ॥ स्यंतक मणि की कथा यदि और लोगों को सुना कर पढ़ी जाये तो इसका फल पाठक के साथ ही श्रोता को भी मिलता है। 



Wednesday, July 12, 2017

श्रावण मास और शिव पूजन





सावन माह का महत्व :-


सावन माह का हिन्दू धर्म में विशेष महत्त्व है । साथ ही इस माह में शिव जी की पूजा का भी विशेष विधान है । लोग इस माह में मांस -मदिरा का त्याग कर देते है ,कुछ लोग बाल भी नहीं बनवाते हैं ,और पूरे सावन में शंकर जी के मंदिर में जलाभिषेक करते हैं । इस माह में शिव -पुराण पढ़ने  का विशेष महत्त्व है। कहाँ यह भी गया है की सावन माह में ही समुद्र मंथन किया गया था और फिर जो विष निकला था इसे शिव जी ने ग्रहण किया था और उनके ताप को शांत करने के लिए इंद्र भगवन ने बारिश की. कथाएं और कारण जो भी हो पर सावन माह में शिव भक्ति का विशेष महत्त्व है।





पूजन का फल :-






सावन में ही नहीं अपितु हर माह में शिव पूजा का फल मिलता है ,  मगर सावन माह शंकर जी अति प्रिय है , कहा जाता है सावन में रुद्राभिषेक करने से उत्तम फल की प्राप्ति होती है । माता पार्वती ने शिव जी को पति के रूप में पाने के लिए कठिन तप किया था ।लोग कांवर ले कर जाते हैं और शिव धाम में जाकर जलाभिषेक करते हैं । इस माह में कुवाँरी कन्याएँ ही नहीं अपितु सभी वर्ण और उम्र के लोग शिव जी की पूजा करते हैं, मंदिरों में शिवलिंग की बेलपत्र और दूध से विशेष पूजन किया जाता है।


पूजन विधि :-

  • पूरे  सावन में विल्व -पत्र चढाने से मोक्ष की प्राप्ति होती है .। 
  • विल्व -पत्र पर राम नाम लिख कर शिव जी पर चढ़ाएं । 
  • सावन में शहद या गन्ने के रस से अभिषेक का विशेष महत्त्व है .। 

शिव पर पुष्प चढाने का फल :-

शिव पुराण में भगवान् शिव पर विभिन्न पुष्पों की पूजा का क्या फल मिलता है इसका विस्तृत वर्णन है --

  • लाल डंडे वाले धतूरे के पुष्प चढ़ाने से उत्तम संतान की प्राप्ति  होती है । .
  • आयु की कामना रखने वाला यदि सावन माह में सवा लाख दूर्वा चढ़ाये तो दीर्घ आयु की प्राप्ति होती है । 
  •  तुलसी दल चढ़ाने वाले को मोक्ष की प्राप्ति होती है । 
  • सफ़ेद और लाल आक के पुष्प भोग और मोक्ष दोनों ही प्रदान करते हैं । 
  • बंधूक (दुपहरिया ) के पुष्प चढ़ाने से आभूषणों की प्राप्ति होती है । 
  • चमेली के पुष्प चढ़ाने से वाहन   आदि की प्राप्ति होती है ऐसा शिव पुराण में वर्णन है । 
  • शमी -पत्र चढ़ाने से भी मोक्ष की प्राप्ति होती  है । 
  • बेल ,जूही और कनेर के पुष्प वस्त्र ,और धन-धन्य दिलाने वाले होते हैं । 
  • राई  के पुष्प शत्रुओं पर विजय दिलाते हैं । 
  • चंपा और केवड़ा के अतिरिक्त सभी पुष्प शिव जी को प्रिय हैं । 

इन सभी पुष्पों को कम से कम सवा लाख की मात्रा में यदि चढ़ाया जाये तो अभीष्ट की प्राप्ति होती है .

  • भगवान शिव को चावल के अक्षत चढाने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है । 
  • किसी  भी पूजा  का फल तब प्राप्त होता है जब पूजा सच्चे मन और लगन से की जाये । 


सावन में गन्ने के रस से अभिषेक करने से गृह कलह से मुक्ति मिलती है । सवा लाख तिलों से शिवजी को आहुति दी जाये तो शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है ।

Tuesday, May 2, 2017

मोहिनी एकादशी 6 मई 2017

आने वाली 6 मई 2017 को मोहिनी एकादशी है ,जो की बैशाख माह के शुक्लपक्ष को होती है और इस वर्ष ये एकादशी 6 मई को पड़  रही है, एकादशी के व्रत के लिए तारीख कोई भी उसका महत्त्व नहीं तिथि का महत्त्व होता है, हिंदुस्तानी कैलेंडर में हर दिन  तिथियें होती हैं पूरे महीने यदि देखा जाये तो कोई न कोई उपवास माना गया है, कोई सोमवार का व्रत रहता है रो कोई मंगलवार।  


 महत्त्व:-

हर एकादशी का अपना अलग महत्व है ,कहा गया है की इस एकादशी के व्रत के प्रभाव से निन्दित कर्मों से छुटकारा मिल जाता है । मोहनी एकादशी के व्रत से कहा गया है की इसको करने से मनुष्य के निन्दित कर्मों व् अन्य कर्मों से छुटकारा मिल जाता है। 


कथा:-

इस दिन पुरषोत्तम राम की पूजा का विधान है ,भगवन राम की प्रतिमा को स्नानादि से शुद्ध करने के पश्चात उच्चासन पर विराजमान करने के बाद धूप  ,दीप एवम मीठे फलों से पूजन किया जाना चाहिए .। रात्रि में कीर्तन करते हुए मूर्ति  के समीप ही शयन करना चाहिए ,और फिर प्रातः काल में स्नानादि से निवृत होकर दान करें और फिर अन्न ग्रहण करना चाहिए । इस एकादशी का महत्तम राजा  राम ने महर्षि वशिष्ठ से पूछा था ,वशिष्ठ जी ने कहा ----सरस्वती नदी के तट पर चन्द्रावती नाम की नगरी है ,उसमें धृत राजा राज्य करता था  । एक धनपाल नाम का वैश्य  रहता था ,बड़ा ही धर्मात्मा और विष्णु का भक्त था । उसके पांच पुत्र थे, बड़ा पुत्र महापापी था । जुआ खेलता ,मद्धपान  करना नीच कर्म करने वाला था । उसके माता, पिता ने कुछ धन देकर उसे घर से निकाल दिया । आभूषणों को बेचकर कुछ दिन उसने काटे ,अंत में धनहीन हो गया और चोरी करने चला ,पुलिस ने पकड़ कर बंद कर दिया । दंड की अवधि व्यतीत हुई तो नगरी से निकाला गया , वन में पशु -पक्षियों को मारता -खाता समय व्यतीत करने लगा । एक दिन उसके हाथ शिकार न लगा ,भूखा- प्यासा कोठर मुनि के आश्रम पर आया ,हाथ जोड़कर बोला मैं आपकी शरण में  हूँ ,पातकी हूँ ,कोई उपाय बताकर मेरा उद्धार करें ?मुनि बोले वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का एक व्रत करो ,अन्नत जन्मों के पाप भस्म हो जायेंगे । मुनि की शिक्षा से वेश्य कुमार ने मोहिनी एकादशी का व्रत किया । पापरहित होकर विष्णु लोक को चला गया .



महात्म्य का फल :-


इसका महात्म्य सुनने  से हजार  गायों के दान का फल मिलता है ।  


किस प्रकार का सागर लें:-


इस दिन गाय के मूत्र का सागार लेना चाहिए । 


Thursday, April 13, 2017

भजन







                                               बड़ा आनंद आता है, प्रभु का नाम लेने में 




१. इधर गंगा, उधर यमुना, बीच में त्रिवेणी आती है -२
                          बड़ा आनंद आता है त्रिवेणी में नहाने में -----

२. इधर चन्दा, उधर सूरज, बीच में तारे आते हैं -२
                          बड़ा आनंद आता है हमें तारे गिनने में ---------

३. इधर गीता, उधर भगवत, बीच में मानस आता है -२
                         बड़ा आनंद आता है हमेमिन मानस को पढ़ने में ---------

Tuesday, April 11, 2017

भजन







                                       चले श्याम सुन्दर से मिलने को भोला
                                       भस्म रमी अंग पड़ा,  काँधे पे झोला 


             १. महलों में जाकर अलख को जगाया, भीतर भर थाल मोतियों का आया -२
                                                                                मैया की भिक्षा ले लो तुम भोला -----

            २. न तो मैं मैया भिक्षा का हूँ आसी, मोहन के दर्शन को अँखियाँ हैं प्यासी -२
                                                                               दिखला दो दर्शन मगन होये चोला ---

         ३. मोहन के दर्शन जो भोला ने पाए,  देवोँ ने नभ से हैं पुष्प गिराए -२

                                                                            तुलसी कहे ये मिलन है अलबेला -----

भजन


     


                                   सखी री बांके बिहारी से लड़ गयी अँखियाँ
                                    बचाई थी बहुत लेकिन निगोड़ी लड़ गयी अँखियाँ 



१. न जाने क्या किया जादू ये तकती रह गयीं अँखियाँ -२
                 चमकती है बरछी सी कलेजे गड गयी अँखियाँ .....


२. चहुँ दिस  रस भरी चितवन मेरी आँखों में लाते हो -२
               कहो कैसे कहाँ जाऊँ ये पीछे पड़  गयी अँखियाँ  ......


३.  भले तन से निकले प्राण मगर ये छवि न निकलेगी -२
            अँधेरे मन के मंदिर मणि सी जड़ गयी अँखियाँ  ...... 

Friday, March 24, 2017

navratri shubhaarmbh /नवरात्री का शुभारम्भ 28 march 2017

दोस्तों ,इस वर्ष नवरात्री का शुभारम्भ दिनांक 28 मार्च २०१7 को हो रहा है, और हर वर्ष की भांति हम सभी अपने मंदिर में पूजन करने के लिए जाने की तैयारी में लग गए हैं.

फिर मैंने सोचा जाने से पूूर्व आप सभी के साथ नवरात्री की पूजा की विस्तृत जानकारी शेयर कर लूँ ,

नवबर्ष का आरंभ ------

भारतीय शास्त्र के अनुसार चैत्र मास    के शुक्ल पक्ष से नव वर्ष का आरम्भ होता है .ऐसा माना जाता है की इसी दिन ब्रह्मा जी ने स्रष्टि का सृजन किया था .कुछ लोग ऐसा मानते हैं की भारत के प्रतापी राजा चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के संवत्सर का आरंभ भी इसी दिन से किया  था ,अतः इस दिन का दोनों ही द्रष्टि से बहुत महत्त्व है .ऐसी मान्यता भी है की इसी दिन भगवन विष्णु ने मतस्य अवतार लिया था |

सवाल ये है की  इसी दिन से ही संवत्सर का आरंभ क्यों माना जाता है ---


१.तो पहली बात यह मानी जाती है की चैत्र मास  में ही वृक्ष और लताएं  नव पल्लवित होती हैं .
२. कहते हैं की माघ मास  में मधुरस पर्याप्त मात्रा में मिलता है ,मगर इसका कहीं भी स्पष्ट उल्लेख नहीं है ,इसलिए चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से ही नव वर्ष का आरम्भ माना गया है |

इसी दिन पंचांग की पूजा का भी विधान है 



,बहुत सारे घरों में पंडित के द्वारा पंचांग की पूजा कराकर संवत सुनकर  नव वर्ष का स्वागत किया जाता है ,मुझे याद है हमारे घर में भी हमारे पूज्य दादाजी भी इस पूजा का आयोजन करते थे उसके बाद पूज्य  पिताजी और फिर हमारे भाइयों ने भी इस प्रथा को आगे बढाया .
चैत्र मास की प्रतिपदा को गुडी पड़वा के रूप में भी हर्सौलास से मनाया जाता है ,सूर्य को अर्घ्य देकर नव वर्ष का स्वागत किया जाता है .
 नवरात्री साल में मुख्यतः २ बार  मनाई जाती हैं जिसमें एक चैत्र पक्ष की और दूसरी आश्विन पक्ष की .इन दोनों में ही सामान रूप से माँ दुर्गा और कन्या की पूजा का विधान है .नवरात्री पूजन प्रतिपदा से दशमी तक मनाई जाती  है ,ज्यादातर लोग नवमी को कन्या पूजन करके उपवास समाप्त करते हैं .
पूजन के स्थान की अच्छी तरह से सफाई करें और अगर सम्भव हो तो पूजा घर को पानी से घो लें .
सभी भगवान् के वस्त्र बदल दें .माता की मूर्ति या फोटो को साफ़ कर लें . अब सबसे पहले घट स्थापना की तैयारी करें ||.


पूजा के लिए जो भी स्थान नियत हो वो स्थान ,पहनने वाले वस्त्र हमेशा शुद्ध हों ,आसन काला नहीं होना चाहिए ,ऐसी मान्यता है की पूजन के लिए ऊन  का आसन सर्वोत्तम होता है ,कहते हैं की काठ के ऊपर बैठकर पूजा करने से निर्धनता आती है ,और पत्थर पर बैठ कर पूजा करने से रोग आते हैं ,अतः कोशिश  करनी चाहिए की पूजा का स्थान और आसन दोनों ही पवित्र हों .

घट स्थापना -----


  1.   १ कलश मिटटी का या फिर पीतल का 
  2.   जों बोने के लिए एक मिट्टी का पात्र .
  3.   जटा  वाला  नारियल  .
  4. पान के या अशोक के पत्ते ५ .
  5. साफ़ मिट्टी या रेता .
  6. चावल १ बड़ा चम्मच .
  7. एक गहरी कटोरी .
  8. रोली ,और मोली .
  9. रूपये .इछानुसार .
  10. जोँ  २ बड़े चम्मच 
  1. नारियल के लिए कपडा . 

विधि -------

  1. कलश को अच्छी तरह से धो कर उसमें साफ़  पानी भरें .
  2. अब मिट्टी के पात्र को भी पानी से धो लें . 
  3. इसमें मिट्टी भरें .
  4. इसके बीच में कलश को रखें और कलश के गर्दन में मोली को चारों ओर से लपेटें .
  5. कटोरी में चावल भरकर इसे  कलश के ऊपर रखें और कटोरी के नीचे पहले कलश में आम के पत्तों  को सजाते हुए लगायें ताकि इस कटोरी से ठीक से सेट हो जाएँ .
  6. अब रोली की सहायता से कलश पर स्वस्तिक बनाएं .
  7. नारियल पर कपडा और  मोली  बाँध कर इसे चावलों वाली कटोरी के ऊपर रखें ,
  8. नारियल पर रूपये चढ़ाएं .

पूजन का सामान -----


  1. माता की चुन्नी .
  2. रोली , मोली  ,
  3. साबुत सुपारी .९ 
  4. जायफल ९  
  5. पान के पत्ते  ९ .
  6. हवन  सामिग्री १ किलो .
  7. काले तिल १ ० ० ग्राम .
  8. चावल धुले हुए ५ ० ग्राम .
  9. पञ्च मेवा कटी हुई २ बड़े चम्मच .
  10. गुड़  २ बड़े चम्मच .
  11. बूरा   १ बड़ा चम्मच .
  12. देशी घी २ बड़े चम्मच .
  13. रुई .
  14. चावल पूजा के अक्षत के लिए  
  15. धूप  बत्ती .
  16. चौकी १ .
  17. बड़ा दिया १ .
  18.  लाल कपडा बिछाने के लिए १ मीटर .
  19. गूगल १ चम्मच .
  20. ताम्र कुंड  हवन के लिए 
  21. कपूर .
  22. लौंग .
  23. दिए के लिए तेल या घी .
  24. पुष्प .
  25. बताशे प्रशाद के लिए 
  26. जल का लोटा 
  27. हवन के लिए आम की लकड़ी .

विधि -------------


  1.  चोकी के ऊपर लाल वस्त्र बिछाकर माता को चुन्नी उढ़ाकर  विराजित करें .
  2. हवन सामिग्री में गूगल ,मेवा,चावल,तिल ,जों, देशी घी ,बूरा,गुड़ को अच्छी तरह से मिलाकर सामिग्री को तैयार करें .
  3. अब माता के उत्तर पूर्व में घट रखें ,और दिए में घी या तेल सामर्थ्य के अनुसार भर कर और माता के समक्ष रखें .
  4. थाली में रोली,मोली ,चावल ,धूप बत्ती ,लौंग ,कपूर ,पुष्प ,बताशे रखें।

पूजन की विधि -----------

  1. आसन को बिछा कर बैठें और माँ का ध्यान करें .
  2. जल से आचमन करें,अब माता को स्नान कराएं  ,पुष्प समर्पित करें ,
  3. टीका करें ,दिया प्रज्व्व्लित करें और फिर माता की आराधना करें 
  4. आराधना में माता की स्तुति ,चालीसा पाठ  और आरती करें .
  5. अब हवन के लिए कुंड में लकड़ी लगाकर कपूर से प्रज्वलित करें और सभी लोगों को सामान भाग से सामिग्री दे कर हवन शुरू करें .
  6. हवन करने के बाद प्रशाद ,पान चढ़ाएं .
  7. हवन के लिए या तो पंडित बुलाकर हवन कराएं या फिर स्वयं करें ,स्वयं हवन करने के लिए मन्त्र किसी पंडित से पूँछ कर ही करें ,अन्यथा न करें .
  8. अंत में सबको प्रशाद बांटें .

उपवास ---



  1.    नवरात्री मे अधिकतर लोग उपवास रखते हैं ,अगर आप ९ दिनों का व्रत नहीं रख सकते हैं तो पहला और आखिरी  यानि की प्रतिपदा और अष्टमी का व्रत रखें 
  2. उपवास में फल ज्यादा खाएं और पानी भी लगातार पियें  ताकि शरीर में पानी की कमी न हो .
  3. व्रत ,उपवास शरीर के क्षमता के अनुसार ही रखना चाहिए . 
  4. नवरात्रि में माता का कीर्तन अवश्य करें ,ऐसी मान्यता है की यदि माता के छंद  नहीं गए जाते है तो माता एक पैर से खड़ी रहती हैं .
  5. संभव हो सके तो माता के मंदिर भी जायें . 

माँ दुर्गा के ९ रूपों की पूजा का विधान नवरात्री में है,और माँ के ९ रूपों की व्याख्या इस प्रकार है  -----

  1. प्रथम हैं माँ शैलपुत्री ,हिमालय पुत्री होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा .
  2. नवरात्री के दुसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी   की पूजा का विधान है ,तप और जप करने के कारन इनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा  .
  3. माँ चंद्रघंटा की पूजा नवरात्री की तीसरे दिन की जाती है ,इस रूप में माँ के मस्तक पर अर्धचन्द्र बना है अतः इस रूप को चंद्रघंटा कहते हैं .
  4. चतुर्थी को माँ कूष्मांडा की अर्चना का विधान है .ऐसा कहा जाता है मंद हंसी के द्वारा माँ ने ब्रम्हांड को उत्पन्न किया .इसलिए इन्हें कुष्मांडा  कहा जाता है 
  5. चार भुजाओं वाली माँ स्कंदमाता की अर्चना पंचमी को की जाती है .
  6. जिनकी उपासना से भक्तों के रोग ,शोक ,भय ,और संताप का विनाश होता है ऐसी माँ कात्यायनी की उपासना छठे दिन की जाती है .
  7. काल से रक्षा करने वाली देवी कालरात्रि की उपासना सातवें दिन की जाती है .
  8. शांत रूप वाली ,भक्तों को अमोघ फल देने वाली देवी महागौरी की पूजा आठवें दिन की जाती है .
  9. भक्तों की  समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली देवी सिध्दात्री की पूजा नवें दिन की जाती है .

 ऐसा माना जाता है की ,नवराति में माँ की आराधना करने में सबसे पहले माता के १ ० ८ नामों के पढना चाहिए ,जो इस तरह हैं ---------

  1. सती .
  2. साध्वी .
  3. भवप्रीता .
  4. भवानी  
  5. भवमोचनी .
  6. आर्या .
  7. दुर्गा .
  8. जया .
  9. आध्रा .
  10. त्रिनेत्रा .
  11. शूलधारिणी .
  12. पिनाकधारिणी .
  13. चित्रा .
  14. चंद्रघंटा .
  15. महातपाः .
  16. मनः .
  17. बुद्धिः .
  18. अहंकारा .
  19. चित्तरूपा .
  20. चित्ता 
  21. चितिः  
  22. सर्वमंत्रमयी .
  23. सत्ता .
  24. सत्यान्द्स्वरूपिनी .
  25. अनंता .
  26. भाविनी .
  27. भाव्या .
  28. भव्या .
  29. अभव्या .
  30. सदागति .
  31. शाम्भवी .
  32. देवमाता .
  33. चिंता .
  34. रत्नप्रिया .
  35. सर्वविद्या .
  36. दक्ष  कन्या 
  37. दक्ष यग्यविनाशिनी 
  38.  अपर्णा .
  39. अनेकवर्णा .
  40. पाटला .
  41. पाटलावती .
  42. पट्टाम्बर परिधाना .
  43. कल्मंजीर्रंजनी .
  44. अमेयविक्रमा .
  45. क्रूरा .
  46. सुंदरी .
  47. सुरसुन्दरी .
  48. वनदुर्गा .
  49. मातंगी .
  50. मतंग्मुनिपूजिता .
  51. ब्राह्मी .
  52. माहेश्वरी .
  53. ऐन्द्री .
  54. कौमारी .
  55. वैष्णवी .
  56. चामुंडा .
  57. वाराही .
  58. लक्ष्मी .
  59. पुरषा कृति  .
  60. विमला .
  61. उत्कार्शनी 
  62. ज्ञाना  .
  63. क्रिया .
  64. नित्या .
  65. बुद्धिदा .
  66. बहुला .
  67. बहुलप्रेमा 
  68. सर्ववाहन वाहना .
  69. निशुम्भ्शुम्भ्हन्नी .
  70. महिशाशुर मर्दिनी .
  71. मधुकैटभ हननी .
  72. चंड मुंड विनाशिनी .
  73. सर्व असुर विनाशा .
  74. सर्वदानव घातिनी .
  75. सर्वशात्र्मायी .
  76. सत्या .
  77. सर्वाशास्त्र्धरिणी .
  78. अनेकाश्त्र हस्ता  
  79. अनेकाश्त्र धारिणी .
  80. कुमारी .
  81. एक कन्या .
  82. कैशोरी .
  83. युवती .
  84. यति .
  85. अप्रोढ़ा .
  86. प्रोढा .
  87. वृद्ध माता .
  88. बलप्रदा .
  89. महोदरी .
  90. मुक्तकेशी .
  91. घोररूपा .
  92. महाबला .
  93. अग्निज्वाला .
  94. रौद्रमुखी .
  95. कालरात्रि .
  96. तपस्वनी .
  97. नारायणी .
  98. भद्रकाली .
  99. विष्णुमाया .
  100. जलोदरी .
  101. शिवदूती .
  102. कराली .
  103. अनंता .
  104. परमेश्वरी .
  105. कात्यायनी .
  106. सावित्री .
  107. प्रत्यक्षा .
  108. ब्रह्मवादिनी .
देवी के नामों का जो प्रतिदिन पाठ करता है उसके लिए तीनों लोकों में कुछ भी असाध्य नहीं है .
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अब  माता की सप्तसती मन्त्रों से पूजा अर्चना आरम्भ की जानी चाहिए ,जो इस प्रकार से है ----------



  1. देवी प्रप्न्नाति हरे प्रसीद प्रसीद मार्त जगतो अखिलस्य ,प्रसीद विश्वेश्वरी पाहि विश्वं त्वमीश्वरी चराचरस्य .
  1. सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके  ,शरण्ये त्रयम्बिके नारायणी नमोस्तुते । 
  1. देवी त्वं भक्तसुलभे सर्वकार्य विधायिनी ,कलोहि  कार्य सिद्धर्थ्य मुयाम ब्रूह यत्नतः .
  1. ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी  भगवती हि सा , बलादा कृष्य  मोहाय महामाया प्रयक्षति । 
  1. दुर्गे स्मरता हरसि भीतिमशेष  जन्तोः ,स्वस्थे स्मरता मतिमतीव शुभां ददासि । 
  1. दारिद्य दुःख भय हारिणी का त्वन्द्या ,सर्वोपकार करनाय सदार्द चिता । शरणागत दीनार्त परित्राण परायने ,सर्व्स्यार्ति हरे नारायणी नमोस्तुते । 
  1. सर्वस्वरूपे सेर्वेषे सर्वशक्ति समन्विते ,भयेभ्यस्त्राहि नो देवी दुर्गे नमॉस्तुते । 
  1.  रोगान शेशान  पहन्सि तुष्टा ,रुष्टा तू कामान सक्लांभिशितान । त्वं आश्रीतानाम न विपिन्नरानाम ,त्व्माश्रिता ह्याश्रिता प्रयन्ति  '
  1. सर्वबाधा प्रस्मनम त्रैलोकश्य अखिलेश्वरी ,एवमेव त्वया कार्यमस्द्वैरी  .विनाशं । 
            प्रतिदिन माँ दुर्गा के संक्षिप्त स्तुति सम्पूर्ण कार्य और मनोरथ पूर्ण करने वाली है ।  

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                      तत्पचात माँ का कीलक स्त्रोत का पाठ किया जाना चाहिए -------

महर्षि मार्कण्डेय जी बोले -----
कल्याण प्राप्ति हेतु निर्मल ज्ञानरूपी शरीर धारण करने वाले दिव्य नेत्रों वाले ,तथा मस्तक पर अर्धचन्द्र धारण करने वाले भगवन शिव जी! को नमस्कार है 
,इस धरा पर जो मनुष्य इस कीलक मन्त्र को जानने वाला है वाही कल्याण को प्राप्त करता है । जो केवल सप्तशती से ही देवी की स्तुति करता है उसे इस कीलक से देवी की सिद्धि हो जाती है ।देवि की सिद्धि  के लिए दूसरी साधना की आवश्यकता नहीं रह जाती ,लोगों के मन में आशंका थी की केवल सप्तशती   के मन्त्रों की उपासना अथवा अन्य मन्त्रों की उपासना से भी सामान रूप से सब कार्य सफल हो जाते हैं तो इनमें से कौन सा साधन श्रेष्ठ है । 
         इन सभी शंकाओं को लेकर भगवन शंकर ने अपने सामने आये भक्तों को समझते हुए कहा---- सप्तशती नामक सम्पूर्ण स्त्रोत कल्याण को देने वाला है और तभी भगवन शंकर ने माँ के सप्तशती नामक स्त्रोत को गुप्त कर दिया । इसलिए मनुष्य इसको बड़े पुण्य  से प्राप्त करता है । 
जो भी मनुष्य अष्टमी को या कृष्ण पक्ष की चतुर्दसी को देवी को अपना सर्वस्व  समर्पित कने के पश्चात् उसे प्रसाद रूप में ग्रहण करता है ,उस पर माँ दुर्गा प्रसन्न हो जाती हैं,अन्यथा नहीं  । इस प्रकार शिव जी द्वारा इस स्त्रोत को कीलित किया गया है ,और जो पुरुष इस स्त्रोत को निश्कीलित करके नित्य प्रति पाठ करता है ,वह सिद्ध हो जाता है और वही गंधर्व होता है । 
इस संसार में सर्वत्र विचरते हुए भी उस मनुष्य को भय नहीं रहता म्रत्यु के पश्चात मोक्ष प्राप्त करता है । किन्तु इस कीलक की विधि को जानकार ही सप्तसती का पाठ करना चाहिए । कीलन  और निष्कीलन के ज्ञान के पश्चात यह स्त्रोत निर्दोष हो जाता है । ऐसा कहा जाता है , की स्त्रियों में जो सौभाग्यहैं ,इसी पाठ की कृपा स्वरूप हैं । 
         इस स्त्रोत का पाठ उच्च स्वर में करने से ही की जानी चाहिए । उस देवी की स्तुति अवश्य की जानी चाहिए जिसके प्रसाद स्वरूप सौभाग्य ,आरोग्य ,सम्पत्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है । 
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              इसके उपरांत अर्गला स्त्रोत का पाठ करना चाहिए जो इस प्रकार है --------------

जयंती ,मंगला ,काली ,भद्रकाली,कपालिनी ,दुर्गा ,क्षमा ,शिव,धात्री स्वाहा ,स्वधा इन रूपों में प्रसिद्ध माँ तुमको नमस्कार है ..

  1. सब जगह व्याप्त प्राणियों के दुःख हरने वाली माँ !कालरात्रि तुम्हें नमस्कार है ,मधुकैटभ का नाश करने वाली माँ ब्रह्मा जी को वर देने वाली माँ तुम मुझे रूप दो जय दो और काम क्रोध रुपी शत्रुओं का नाश करने वाली माँ तुमको मेरा नमस्कार है .। 
  2. महिषासुर मर्दिनी माँ! भक्तों को सुख देने वाली तुमको नमस्कार हो ,तुम मुझे रूप दो के दो और मेरे शत्रुओं का नाश करो .। 
  3. रक्तबीज का वध करने वाली ,माँ !चंड मुंड विनाशिनी ,तुम मुझे रूप,जय दो और मेरे शत्रुओं का नाश करो .। 
  4. शुम्भ-निशुम्भ का मर्दन करने वाली हे देवी! मुझको स्वरूप दो ,जय दो और मेरे काम,क्रोध रुपी शत्रुओं का नाश करो .। 
  5. हे सम्पूर्ण सोभाग्य  को देने वाली !,पूजित युगल चरणों वाली माँ तुम मुझे रूप दो ,यश दो ,मेरे शत्रुओं का नाश करो । 
  6. तुम सब शत्रुओं का नाश करने वाली! हो ,तुम्हारे रूप और चरित्र अमित हैं ,मुझे रूप दो ,यश दो और काम क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो । 
  7. इस संसार में जो भक्ति से तुम्हारी पूजा करते हैं सबके पापों का नाश करने वाली माँ !तुम उन सबको रूप और यश दो और उनके शत्रुओं का नाश करो । 
  8. माँ रोगों का नाश करने वाली जो भी भक्त तुम्हारी पूजा भक्ति पूर्वक करते हैं उनको रूप और जय दो ,उनके शत्रुओं का नाश करो । 
  9.  हे देवी! माँ मुझे सोभाग्य और आरोग्य दो मुझे रूप दो जय दो और मेरे काम,क्रोध रुपी शत्रुओं का नाश करो । 
  10. हे माँ ! जो मुझसे बैर रखते हैं उनका नाश करके मेरा बल बढाओ ,मुझे रूप,जय दो मेरे शत्रुओं का नाश करो । 
  11. माँ! मेरा कल्याण करके मुझे उत्तम सम्पत्ते प्रदान करो ,मुझे रूप दो जय दो और मेरे शत्रुओं का नाश करो ।  
  12. देवताओ और राक्षसों के मुकुटों द्वारा स्पर्श किये चरणों वाली माँ !अम्बे मुझे स्वरूप ,जय दो ।  
  13. हे देवी! अपने भक्तों को विद्वान ,लक्ष्मीवान और कीर्तिमान बनाकर उन्हें रूप और जय दो ,उनके शत्रुओं का नाश करें । 
  14. हे देवी ! प्रचंड दैत्यों के मान का नाश करने वाली चण्डिके !मुझे रूप दो जय दो ,और मेरे काम क्रोध रुपी शत्रुओं का नाश करो .
  15. हे माँ ! चार भुजाओं वाली परमेश्वरी !मुझे रूप ,जय दो मेरे शत्रुओं का नाश करो । 
  16. विष्णु से सदा स्तुति की हुई माँ ! हिमालय कन्या पारवती के भगवान् शंकर से स्तुति की गयी माँ ,मुझे रूप दो जय दो ,और मेरे शत्रुओं का नाश करो । 
  17. इंद्र द्वारा सद्भाव से पूजित माँ! तुम मुझे रूप दो जय दो और मेरे काम क्रोध रुपी शत्रुओं का नाश करो ।  
  18. प्रचंड ,भभुदंड से दैत्यों का दमन करने वाली माँ !मुझे रूप दो ,यश दो ,मेरे शत्रुओं का नाश करो । 
  19. हे देवी! तुम अपने भक्तों को असीम आनंद देने वाली हो ,मुझे रूप ,जय दो और मेरे शत्रुओं का नाश करो 
  20. मेरी इच्छानुसार  चलने वाली सुंदर पत्नी प्रदान करो ,माँ ! जो संसार सागर से तारने वाली हो और उत्तम कुल में उत्पन्न हुई हो .        

 जो मनुष्य इस महा स्त्रोत का पाठ करता है वह श्रेष्ठ फल प्राप्त करता है और प्रचुर धन भी प्राप्त करता है .

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दोस्तों में एक विशेष स्तुति माता की करती हूँ और आप सभी के साथ इसे बांटना चाहती हूँ ,माँ की ये स्तुति समस्त सुखों को  देने वाली है ------

   हे सिंघ्वहिनी  जगदम्बे तेरा ही एक सहारा है --------

  1. मेरी विपदाएं दूर करो ,करुणा की द्रष्टि  इस ओर करो । संकट के बीच घिरा हूँ माँ आशा से तुम्हें पुकारा है .
  2. कुमकुम ,अक्षत और पुष्पों से नैवेध धूप और अर्चन से । नित तुम्हें रिझाया करती हूँ क्यों अब तक नहीं निहारा है .
  3. जब-जब मानव पर कष्ट पड़े तब-तब तुमने अवतार लिया । हे कल्याणी ! हे रुद्राणी ,इन्द्राणी रूप तुम्हारा है .
  4. भाव -बाधाएं हरने वाली जन-जन की बाधाएं हरती हो । मेरी भी बाधाएं हरना जग जननी नाम तुम्हारा है .
  5. कौमारी ,सरस्वती हो तुम ,ब्रम्हाणी तुम वैष्णवी हो ।कर शंख चक्र और पुष्प लिए लक्ष्मी भी रूप तुम्हारा है .
  6. मधुकैटभ सा दानव मारा और चंड मुंड को चूर किया ।हे महेश्वरी ,महामाया चामुंडा रूप तुम्हारा है .
  7. धूम्रलोचन को तुमने मारा ,महिषासुर तुमने  संहारा है । हे सिंघ्वाहिनी !अष्टभुजी नवदुर्गा रूप रुम्हारा है .
  8. था शुम्भ-निशुम्भ असुर मारा और रक्तबीज का रक्त पिया । हे शिवदूती! हे गौरी माँ काली भी रूप तुम्हारा है .
  9. जब वैश्य -सुरथ ने तप करके अपना तन तुम्हें चढ़ाया था । दर्शन दे जीवनदान दिया ज्योतिर्मय रूप तुम्हारा है .
  10. तेरी शरणागत में आकर तेरी ही महिमा को गाकर ।माँ ! सप्तशती के मन्त्रों से भक्तों ने तुहें पुकारा है .

                  हे सिंघ्वाहिनी जगदम्बे तेरा ही एक सहारा है  ---------------------

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इस प्रकार से आप सभी नवरात्री की पूजा कि शरुआत करें